Kumar Kassap * कुमार कस्सप (PDF-Hindi)
Kumar Kassap * कुमार कस्सप
बुद्ध के अग्रश्रावकोंकी शृंखला में वि.वि.वि से प्रकाशित यह पुस्तक पुराने साधकों को गंभीरतापूर्वक साधना करने के लिए प्रेरित करती है तथा नये साधकों को विपश्यना के अनुकरणीय एवं आदर्श साधकों के मार्गपर चलने को प्रेरित करती है।
इस पुस्तक में बुद्ध के कुशल वक्ता भिक्षुश्रावकोंमें अग्र ‘कुमारकस्सप’ जीवनचरित वर्णित है।
स्थविरकुमार कस्सप का जन्म भिक्षुणी विहार में हुआ था और पालन-पोषण राजमहल में। वे एक भिक्षुणी के पुत्र थे।विवाह के थोड़े ही दिनों बाद कस्सप की मां प्रव्रजित हो गयी। वह अपने गर्भिणी भाव को नहीं जानती थी। बुद्धने परिषद के मध्य जाँच कराकर पाया कि उसका गर्भ गृहस्थकाल का है।भिक्षुणी एकदम परिशुद्ध है।
पूर्वजन्मों के कुशल कार्यों के फलस्वरूप आयुष्मान कस्सप को सात वर्ष की अवस्था में धर्मसंवेग जागा और वे प्रव्रजित हो गये।एक ब्रह्म की सहायता से वे बारह वर्षों बाद अर्हत्व को प्राप्त हुए।
इनकी भाषणकला अद्भुत थी।अपनी भाषणकला से राजन्यपायासिकी मिथ्या धारणा को समाप्त करनेपर भगवानने स्थविरकुमार कस्सप को वक्ताओं में अग्रस्थान पर प्रतिष्ठित किया।
साधकों तथा जो साधक नहीं भी हैं उन दोनों के लिए यह एक आदर्श पुस्तक है।