Kaligodhaputta Bhaddiya Evam Pindol Bharadwaj * काळिगोधापुत्त - पिण्डोलभारद्वाज (Paperback book)
काळिगोधापुत्त भद्दिय एवं पिण्डोलभारद्वाज
विपश्यना विशोधन विन्यास द्वारा बुद्ध के अग्रश्रावकों की शृंखला में प्रकाशित इस पुस्तक का उद्देश्य पुराने साधकों को गंभीरतापूर्वक साधना करने तथा नये साधकों को इसी मार्ग पर चलने और आदर्श विपश्यी साधक बनने की प्रेरणा देना है।
काळिगोधापुत्त भद्दिय और पिण्डोलभारद्वाज दोनों ही बुद्ध के अग्रश्रावक थे। अपने पूर्व कर्मों के फलस्वरूप ‘भद्दिय’ का जन्म एक राजपरिवार में हुआ था। अपने धनिष्ठ मित्र अनुरुद्ध के आग्रह पर राज्य त्याग कर छ: शाक्य कुमारों एवं सेवक उपालि के साथ प्रव्रजित हो गये और अर्हत्व पद प्राप्त किया। अपने पूर्वजन्मों में महादान देने के फलस्वरूप भगवान ने इन्हें ‘उच्चकुलीनों में अग्र’ स्थान पर प्रतिष्ठित किया।
‘पिण्डोलभारद्वाज’ पूर्वकाल में सिंह योनि में जनमे भगवान पदुमुत्तर का भविष्यकथन सुनकर ये तत्काल शरीर त्यागकर ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुए। खाने में लोभी और लालची थे, जहां भी जाते भोजन की प्रतीक्षा करते इसलिए इनके नाम के आगे पिण्डोल विशेषण जुड़ गया। कुशल कर्म में रत परिश्रमपूर्वक विपश्यना करते हुए अर्हत्व पद को प्राप्त किया। अर्हत्व प्राप्ति के पश्चात आयुष्मान ने सिंहनाद किया— जिसको मार्ग और फल में शंका है मुझसे पूछे। भगवान ने ‘सिंहनाद करने वालों में अग्र’ स्थान पर प्रतिष्ठित कर स्थविर पिण्डोलभारद्वाज की प्रशंसा की। इस पुस्तक में दोनों अग्रों के जीवन चरित वर्णित हैं।
विपश्यी साधकों तथा जो साधक नहीं भी हैं उन दोनों के लिये यह एक आदर्श पुस्तक है।