Khadirvaniya Evam Kankharevat * खदिरवनिय एवं कङ्खारेवत (Paperback, Marathi)
खदिरवनिय एवं कङ्खारेवत
विपश्यना विशोधन विन्यास द्वारा बुद्ध के अग्रश्रावकों की शृंखला में प्रकाशित इस पुस्तक का उद्देश्य पुराने साधकों को गंभीरतापूर्वक साधना करने तथा नये साधकों को इसी मार्ग पर चलने और आदर्श विपश्यी साधक बनने की प्रेरणा देना है।
खदिरवनियरेवत और कङ्खारेवत दोनों ही बुद्ध के अग्रश्रावक थे। ‘खदिरवनियरेवत’ जल विहीन, ऊबड़-खाबड़, झाड़-झंकाड़ वाले खदिर (बबूल) के जंगल में कठोर तपस्या करके ये अर्हत्व को प्राप्त हुए, इसीलिये इनके नाम के आगे “खदिरवनिय” विशेषण जुड़ गया। भगवान ने उन्हें पुण्य-पाप से परे सच्चा श्रमण बताते हुए आरण्यकों में अग्र स्थान पर प्रतिष्ठित किया।
‘कङ्खारेवत’ का प्रारंभ में नाम रेवत था। धर्म-विषयों में शंका करने के कारण उन्हें कङ्खारेवत कहा जाने लगा। कालांतर में वे भगवान के उपदेश से शंका मुक्त शांत चित्त हो गये। भगवान ने उन्हें ध्यानियों में अग्र स्थान पर प्रतिष्ठित किया था।
इस पुस्तक में दोनों अग्रों के जीवन वर्णित हैं तथा बुद्ध द्वारा इन्हें जो निर्देश दिये गये हैं वे भी वर्णित हैं।
विपश्यी साधकों तथा जो साधक नहीं भी हैं उन दोनों के लिये यह एक आदर्श पुस्तक है।